चिराग

-जाने क्यों
हिल तक नहीं पाई मैं,
जब सवार हो रहे थे मुझपर-

-मैं जानता हूँ क्यों.
दवा जो पिलाई थी तुम्हें.
अब हमारा
अपना बच्चा होगा.
सोचो तो ज़रा
तीन साल बाद!-

फडफडा उठे मेरे होठ,
डबडबा उठी आँखें.
तीन साल
धोखे में रखा मुझे!
दोषी खुदको ही
ठहराती रही मैं
अकारण!

तीन महीनों तक
माँ के साथ रहकर
कुछ हिम्मत आई
बाहर आने की.

और अब...

टिप्पणियाँ

Asha Joglekar ने कहा…
जिंदगी की गहरी सच्चाई बयाँ करती कविता ।
तीन साल
धोखे में रखा मुझे!
दोषी खुदको ही
ठहराती रही मैं
अकारण!
हमेशा नारी ही तो कटघरे में खड़ी की गई!!

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