नारकीय



पक्षी
सुबह उठते,
चहचहाते,
दिन भर मेहनत करते,
शाम तक थक कर
ख़ुशी से गुनगुना कर
सो जाते.

पर
यह देखा न गया हमसे,
हर जगह
बोतलों के ढक्कन,
प्लास्टिक के लाईटर,
पन्नियों की
भीड़ लगादी.
अब वे पक्षी
जहाँ भी
जो भी खाएँ और फिर सोएँ,
फिर गाने को उठते नहीं.

**Photograph from a series by Chris Jordan

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