द्वीप

वह रहा मैं-
रास्ते में पड़ा,
कोई हटाओ यार
मुझे मेरे रास्ते से.

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चाबी
एक डब्बे में बंद,
लकड़ी के,
कांच के ढक्कन वाले,
मेज़ पर रखे,
यिन-यांग के बीच,
बैंगनी फूलों से भरे
कंटीले तारों से घिरे
एक द्वीप पर,
साँपों से भरे
हरे पानी वाले
तालाब के बीच.

पहुँच भी जाऊँगा वहां
बस ये हाथ खोल दे कोई,
जोर से बंधे नहीं हैं,
कोई दर्द हो नहीं रहा,
काम भी सब कर रहे हैं,
पर
तालाब पार कर सकूँ
इतने भी आजाद नहीं,
खोल दो न यार.

क्या?
तुम खोल नहीं सकते?
कोशिश तो करो!
अँधेरा?
कैसा अँधेरा?
सूरज तुम्हारे पीछे तो हैं!

हम्म
अपने ही आप पर
भरोसा नहीं इन्हें!
कहाँ फँस गया हूँ मैं!

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