शक्ति / आधिपत्य



हे
क्यों ऐसा कर रहे हो?
दूर रखो मुझसे
अपने ये रोग!

...

पसर के लेट कर
गिरने का जिसके
इंतज़ार कर रही हो
वह अब यहाँ नहीं आता.

फंसा रहता था वह
दुविधा में,
ज़ख्मों से भरा हैं अब,
चू रहा हैं लहू.

...

तख्ता पलट से
जो खालीपन भर आया था
उससे बचने को
उसी तख्त पर जा बैठा.

वह
नगाडों के शोर में
अपना विरोध का स्वर
ढूँढता रह गया.

....

अब
तुम्हारी ज़रुरत रही नहीं,
अब
कई हैं जो
समाने देती हैं,
घुटनों पर होती हैं,
पर अब
वैसा कुछ महसूस नहीं होता,
आखिर सब के लिए करती हैं.

पर अब
किसी पर भी
निर्भर नहीं मैं,
सिंहासन पर अधिकार करने के लिए.

...

वह,
ज़ख्मों से भरा भी,
मुझे छोड़ने को तैयार नहीं.

वह
पूछता रहता हैं
कैसे विश्वास कर लिया मैंने
अपने झूठ पर.

वह,
मेरे झूठों से परे,
मार डालेगा मुझे.

...

हाँ,
महसूस कर सकता हूँ मैं
नाक से चूता खून.
हाँ,
महसूस कर सकता हूँ मैं
ठंडा पड़ता शरीर.
हाँ,

हाँ,
अब भी बाकी हैं मुझमें
महसूस करने की...

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शायद यह सब

जुराब

राज़