ठक! ठक! ठक!



ठक! ठक! ठक!

खो जाता बार-बार
पीले और कुछ लाल गुलाबों के बीच,
मेजों और कौओं के बीच,
ऐसे लोगों के बीच
जिनपर कभी नहीं बैठती कोई मक्खी,
जहाँ गाय छलाँग लगाती हैं
चाँद के पार.

कर दिया उसे बंद.
बैंगनी फूलों के बीच,
फुंकारती खामोशी के बीच,
लपेट कर कंबल.

अब उसकी ठक-ठक पर
ज़रा भी ध्यान नहीं जाता.
और चटकने बंद हो गए हैं
सब धागे.

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