सुरक्षा

सफ़ेद चादर ओढे,
नींद में उतरते-
कुछ आवाजें सुन रहीं थी-
जाने क्या कह रही थी...

कुछ छूट रहा था पीछे,
कुछ हाथ से फिसल रहा था-
जाने क्या था वह...

सपना था शायद-
हाँ, सपना ही होगा.
पसीने में तर थी
कोई डर हावी था दिल पर,
पैर बाहर निकालते लग रहा था-
कोई खींच न ले मुझे-
जाने कहाँ...

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शायद यह सब

जुराब

राज़