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फ़रवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काफ्का

सुबह मेरी आँख खुलने से पहले जा चुका था वह जो मेरी दीवार पर रहता था. शायद दिख नहीं रहा था मुझे रोशनी ठीक नहीं थी शायद पर अब भी वह वहाँ नहीं है. गलत नाम दिया था उसे कुछ और बन कर उड़ गया अब, टिड्डा बना होगा झुण्ड से मिलेगा ले आएगा सबको ढक लेगा सारे मैदान, सारी दीवारें, सारी पपड़ियाँ, सारे पानी के टैंक. फुद्केगा - अकेला.

विशाख

सतहजीवी खुला आकाश पंछियों की उड़ान और लहराते वृक्ष. उपसतह रेंगते सांप पुराणी जड़ें अंधी मछलियाँ और शवभक्षी कीड़े. उसका एक [fork] [mod] यों किया के रह सके यहाँ मेरे साथ अँधेरी उपसतह में. धीरे धीरे इतना अलग हो चला यह [fork] के [base] से कभी [merge] न होगा [buggy] लगेगा. पर इस [fork] में कहीं कुछ ऐसा छूट गया था जो आज अपने सारे [backup] मिटा दिए उसने. ___ काट खाया था मैंने [backup] के भरोसे, उसकी गर्दन पर भिनभिना रहे थे कुछ कीड़े, काले बिन्दुओं जैसे मैंने छू कर देखा, सूंघ कर भी देखा उसका पिलपिला खून ठीक वैसा ही था जैसा मेरी पट्टियों से झाँक रहा था। मैं उसके साथ ही लेट गया एक बांह उसपर टिकाए उसकी नाभि बड़ी करी पेचकश से, तब कुछ संतोष हुआ प्रेम कर. नहा-धोकर आया तड़पते हुए उसे देखा न गया गीला तौलिया गले पर लपेटा. ___ [base] तक जाना होगा फिर नया [fork] लाने, और समझाना होगा उसने [backup] क्यों नहीं बनाया. शायद ना माने अब वह. ___ बदले में अपना [fork] दूँ? सतहजीवी [fork]? तब शायद मान जाए? अकेली कब तक रह पाएगी? ___ काली सिगरेट के धुंए ...

परी

एक परी थी एक मैं था. परी बहुत पुरानी थी मैं कुछ नया था. परी के पास एक छड़ी थी, सितारे वाली मेरे पास कुछ नहीं था. मेरा ख्याल रखेगी, परी ने वादा किया मैं मान गया. मैं उसके घर पर था. वह जो भी कहती मैं मान जाता. वह विश्वास दिलाती - कल बहतर करूँगा मैं चैन से सो जाता. तारे से मुझे छू कर एक दिन परी ने कहा - 'उडो'. मैं भौचक्का उसे देखता रहा और वह जोर से हँसती रही. With samples from परी की कहानी

वैतरणी

चित्र
उस पार जाने को अब तक घूम रहे हैं कागज़ की कश्तियों में कुछ शब्द. वे तैरते रहेंगे मैं ही डूब जाऊँगा इस वैतरणी में.

भिनभिनाती मक्खियाँ

गहराते अंधेरों में नया कुछ दिखने लगता है अपने आप. उभरने लगती है काली दीवार पर एक परछाई, लौट लौट आती हैं मुझतक परछाइयों से टकराकर प्रतिध्वनियाँ. एक मुंह खुला है दीवार में परछाई थी जहाँ रास्ता है कोई अब या कोई गुफा शायद. ऊन से छनकर आती छपाकों की आवाजें, खांसी की दवा पीकर कपड़ों से भरी अलमारी में. उछलती अंधी मछलियाँ अंधे तालाब में, धीरे धीरे जागता एक बच्चा. उपसतहों में रेंगता, दौड़ता, ढूंढता अँधा तालाब. काले शब्दों से भरा आवाज़ वाले शब्दों से छवियों से बिछड़े शब्दों से मुर्दा शब्दों से लाशों से. (सतह पर बहती नदियों से जाने कितने मछुआरों ने भालों की नोकों पर इन्हें एक एक कर पकड़ा और निर्वासित कर दिया सदा के लिए उपसतहों में मरने के लिए एक हुकुम पर. उसके हुकुम पर - मक्खियाँ नहीं बैठती उसपर बड़ी खास है वह. इतनी स्वच्छ की गंगा भी उसे छूकर पवित्र होती है. उसके फैट से ही बस नहाने का साबुन बनता है. ) कोई भटका कौवा कभी खिंचा चला आ...

ढ़ोल

एक बुखार-सा चढ़ रहा है मुझपर नथुनों को शिकायत हैं साँस ज्यादा गर्म है और छाती को लगता है कोई उसे दबाए बैठा है गर्दन से कुछ उठकर तैर रहा है सिर शायद और धड़कन है के शरीर भर में गूँज रही है.