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स्वयंवर

एक वह समय भी था जब सब कुछ आसान लगता था और आसान यों लगता था कि उनकी हर बात में सच दिखता था। पर अब उनके किस्सों में मैं भी घुल गया हूँ और उनमें लगे सारे टाँके मुझमें ही पिरोए लगते हैं कीलों पर टंगा हूँ मैं और मुझ पर पोत दिए हैं रंग अपनी पसंद के, उन्होंने और ये रंग टकराते हैं मेरे अपने रंगों से लाल रंग उभरता है दाहिनी आँख में और काला-भूरा पित्त चढ़ आता हैं मुँह में ढका जाने को नए रंगों से। वे कहती हैं, जो तुम्हें पसंद हैं वही रंग भरुंगी बस इन दो में से मत चुनना।