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पास्चराइजेशन

पास्चराइजेशन एक चाँदी की अशर्फी के बदले एक जोड़ी हाथ, तले हुए, बिना मिर्च मसाले के, (सात्विक भोजन आखिर!) और क्या चाहिए मुझे जीने के लिए! ऊन के गोलों से स्वेटर बुन बुन के, सपने बुनते हुए, मर गई मैं, और अब फिर जन्मी हूँ, सपनो के बिना. अब विश्वास नहीं तुम्हारे ईश्वर और न्याय में, और तुम्हारे निर्वाण में. है विश्वास केवल- ख़ुद में, और पास्चराइजेशन में!

"एक ख्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती"

तैर रहा था मैं कहीं जब वह था तुम्हारे साथ. एक बरछी मुझे लगी और खींच लिया गया मैं किसी जहाज पर. और फ़िर एक दिन सीने से लगा था मैं, उसने अपने हाथ से हमारी नाभि अलग की, और गायब हो गए सदा के लिए. कुछ सपने देखे थे, पर तस्वीर कुछ सिकुड़ गई है, तुम भी दम भर में कुछ कर न पाओगे. पहले, बच्चा साथ रखती, भली जो दिखती थी, बच्चा साथ हैं, क्या बुरा कर लेगी. और अब, दम भर में ही... तेज़, बहुत तेज़ दौड़ा, खून की बूँद आ रुकी आँख में, पर फिर भी दिख रही हो तुम, टोकती हुई, हमेशा-सी. "कुछ नया करो तो, सब कैसे जानें कि अच्छा है या बुरा?" "हम्म" आवाज़ में कभी आंसुओं को सुना हैं? छोटे-छोटे शब्द, दूर दूर, नीली आँखें, खुश्क, सूखे गाल. ठक-ठक! ठक-ठक! नहीं खोलना दरवाजा. ठक-ठक! ठक-ठक! क्या करोगे मुझे देख कर? वही पुरानी कोशिश, तुम-सा नहीं हूँ - फिर भी तुम्हें हक नहीं, काट-काट कर देखने का, एक-एक हिस्से को अलग-अलग कर के मेरे अनुभवों के. तुम सोचते हो मुझे समझ पाओगे! हा!

हूँ -5/ फ्रीडम हॉल

आज तुम पूछते हो कल-सी क्यों नहीं? पर कल भी तुम मुझसे खुश न थे! कहते हो - कमज़ोर हूँ, नहीं है ठहराव! क्यों तुम्हें खटकती है, मेरी यह स्वतंत्रता? मैं तुमसे ही नहीं, अपने कल से भी स्वतंत्र हूँ! मुझे समझ लो अगर पूर्णता में, तो क्या यह मेरी मौत न होगी? विचार, तरल न हों, तो विचार कैसे? 0