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मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सूँ साँ माणस गंध

कुछ खुशबुएँ कड़ी मेहनत के बाद भी बोतलों में नहीं उतरती. न तो आसवन से और न मोम लगी पट्टियों से. इन खुशबुओं से बना एक मुखौटा चाहिए बस तभी मिल सकेगा इतना प्यार कि मेरे टुकड़े सजाना चाहें वे अपने घरों में.

मुखिया जी

मुझसे कहो अपने रहस्य सारे मुझे ले चलो उस नरमेध में, मानुषखोरों की इस दुनिया में यों भी हम बस खाद हैं.

स्नान

पानी से भरा मग्गा सिर पर उड़ेलते समय बाईं भौंह पर उंगली लगी और दर्द दौड़ उठा पूरी आँख में। एक याद है यह उन दिनों की जो कटते थे बस जूस और बिस्कुट पर, दिन भर इंतज़ार ऐसी भूख का जो ले जा सके कहीं दूर। गिर पड़ा था उस शाम कमोड लगा था सिर में और कुछ पल खो गए थे। उन खोए पलों की तलाश में अब तक भटक रहा हूँ और उनके डर से घर चला आया हूँ।

बेकार

बाकी सब तो ठीक है पैसा भी खराब नहीं, पर यह काम करेगा तो लड़की वालों से क्या कहेंगे? यह करने में मज़ा भले आता हो पर नौकरी तो वही अच्छी जिसमें ऑफिस जाना हो रोज़. घर तो बस ...