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चश्मा

एक मजदूर सड़क खोद रहा था आज रात जब मैं खाने निकला. अगर अन्दर एक कंकाल मिले तो क्या वह चीखेगा? दोस्त से पूछा मैंने - काला चश्मा लगाए एक खोपड़ी मिले अगर? वह बोला - चश्मा उतार कर फिर चीखेगा.

सैर

वक़्त. लौट आया. बिना मिले ही.

...

आँखें. भर गई हैं. ठहरे है खिड़की के बाहर कहीं वे दो कंगन, काली खिड़की. हमारी खिड़की- एक दूसरी सी थी, धुंध से भर गई है  ठहर गई है.

इंटरफ़ेस

कभी तुम जोड़ती थी मुझे इस दुनिया से, कब का बह चुका होता दूर कहीं मैं. आज कोई और बता लेता है तुम्हें कैसे बतियाओ मुझसे.

सीलन

बारिश पहले भी आई हैं मेरे कमरे में खिड़की से उतर कर उछलती, गुनगुनाती. पर पहले कभी सीलन नहीं भरी उसने इन दीवारों में. हर दरार में भर गई हैं ठहरे पानी की गंध. और कांच पर उँगलियों के निशान नहीं सिर्फ कोहरा छाया है.