विशाख

सतहजीवी
खुला आकाश
पंछियों की उड़ान
और लहराते वृक्ष.

उपसतह
रेंगते सांप
पुराणी जड़ें
अंधी मछलियाँ
और शवभक्षी कीड़े.

उसका एक [fork]
[mod] यों किया
के रह सके यहाँ
मेरे साथ
अँधेरी उपसतह में.

धीरे धीरे
इतना अलग हो चला यह [fork]
के [base] से कभी [merge] न होगा
[buggy] लगेगा.

पर इस [fork] में कहीं
कुछ ऐसा छूट गया था
जो आज अपने सारे
[backup] मिटा दिए उसने.

___

काट खाया था मैंने
[backup] के भरोसे,
उसकी गर्दन पर भिनभिना रहे थे
कुछ कीड़े, काले बिन्दुओं जैसे
मैंने छू कर देखा, सूंघ कर भी देखा
उसका पिलपिला खून ठीक वैसा ही था जैसा मेरी पट्टियों से झाँक रहा था।

मैं उसके साथ ही लेट गया
एक बांह उसपर टिकाए
उसकी नाभि बड़ी करी
पेचकश से,
तब कुछ संतोष हुआ
प्रेम कर.

नहा-धोकर आया
तड़पते हुए उसे देखा न गया
गीला तौलिया गले पर लपेटा.

___

[base] तक जाना होगा फिर
नया [fork] लाने,
और समझाना होगा उसने
[backup] क्यों नहीं बनाया.
शायद ना माने अब वह.

___

बदले में अपना [fork] दूँ?
सतहजीवी [fork]?
तब शायद मान जाए?
अकेली कब तक रह पाएगी?

___

काली सिगरेट के धुंए में घुली
डिटर्जेंट की गंध,
चारों ओर टंगे आत्म-चित्र.
लाल आँखों वाले भूत
सदा जागते, काटते,
एक सतह रचते, अलग करते
विचारों और वस्तुओं के गोलार्द्ध.
फूलती, फटती धमनियां
हर ओर गुलाबी धूप,
गुलाबी अन्धकार.

___

मैं चाहता था मालिश करना
तेल से, वेसिलीन से, क्रीम से, चॉकलेट से,
पर पिलपिलाहट को छूकर मानो

वह भी पिलपिली हो जाती,
भीतर कि पिलपिलाहट
बाहर कि पिलपिलाहट से
जुड़ जाती, मिल जाती,
सारी सतहें खो जाती,
और सतहों के बिना
उसका ब्रश कहाँ चलता?
कहाँ ले जाता?

___

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