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फ़रवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सब कुछ वही तो नहीं है, पर है वहीँ

आखिर लग ही गई नौकरी वह भी मेरी पसंद की. बहुत अच्छा लगा कुछ दिन नया नया सा. पर फिर सब वही का वही. सुमी ने कहा अब वक़्त आ गया है, मुझे भी यही लगा था, पर नहीं, वह नहीं आया नहीं ही आया. कभी आएगा भी नहीं. उसे पसंद नहीं यह बे-सजावट घर, न स्वागत, न सत्कार. ... अब तक हर दिन सोचता हूँ क्यों नहीं कहा उसने आज इच्छा नहीं, और नहीं कहा तो क्यों बाद में बताया कि नहीं कहा - आज अच्छा लगा मगर उस दिन इच्छा न थी, उस दिन दूर ही रहते - दूर आना ही पड़ा. और क्या करता मैं? वह फिर ना कहती, और फिर मैं अपराधी होता. अटक गया हूँ वहीँ. इतना कुछ बदल गया अब और बदल नहीं सकता. तब उसके साथ न था और अब...

साक्षी

कई वर्ष पहले एक बूढ़े फ़कीर ने कहा था दुबारा जीने का मौका मिले तो मत जीना. पर मैं कहाँ सुनने वाला था! सोचा, इस बार सब बेहतर होगा. अपनी सधी हुई गति से टेप चलती जा रही है. बदलाव है, बस एक...

गईं परी कट दो

ही प्रतिबिम्ब दिखा. जो कभी पसंद न पास आई जादू की तलवार से धीरे ये पंख क्यों सिखाया मुझे उड़ना ' वह पर उड़ते हुए एक दिन मैंने परी था मैं तो था ही नहीं बस एक आई, जादू की छडी के अगले सिरे से नफरत है क्योंकि मैं पंखवालों का पर रेंग रहा था परी मुस्कराई मेरे पास एक परी थी एक मैं था मैं क्या रहा है. आस्था थी, वे आवाजें जो सिर में कहीं थीं, सब मिलकर यह षड्यंत्र रच रहे थी. उतर आना पड़ा उसे उन बिन्दुओं के बीच. देखा उसने हर ओर, हर बिंदु में अपना के खिलाफ.हुई हर उड़ान को हलाल कर से उत्तर दिया- 'क्योंकि मुझे उड़ने वालों पर कहीं वे बिंदु खीचने लगे उसे अपनी ओर. कोशिश परी थी परी ने मुझे देखा मैं धरती उग आए परी ने कहा - 'उड़ो' और रहा था, वह धर्म जो कान फाड़ उड़ाती रही जहाँ तक वह उड़ाती रही वह एक थी परी उड़ रही थी बादलों रही थी, वह धर्म जो नियंत्रित कर दिया अब 'मैं' फिर धरती पर रेंग अच्छा उड़ाक बन गया बादलों के शीश दिया मेरी काया के तार झनझना उठे मेरी  दिखने लगा सतह पर. वे झूठ जिन था खुद में, दबा हुआ था कहीं जाने क्यों की उ