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फ़रवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भोग

शहद जहाँ भी छू जाए छोड़ जाता है अपनी मिठास, और फिर आसानी से छूटती भी नहीं वह चिपचिपी-सी मिठास, कर लेती है आकर्षित जाने किस किस को अपनी लुभावनी गंध से. कुछ चींटियों को भी कर लिया आकर्षित उसने - आ तो गई थीं वे  लाइन लगा कर, पर ज़रा अब देखो उन्हें नीचे बिखरे शहद में  चलते - गोधूली बेला में अटक गया हो जैसे समय. वहीँ बैठ गया मैं भी घुटनों के बल, हाथ में स्ट्रॉ लिए, अटका रहा उनके साथ कुछ पल. फिर स्ट्रॉ होठों पर लगा गहरी सांस खींची चटक कर एक चींटी  उड़ चली मेरी ओर - मीठे शहद में डूबी.

अविगत गति

खाली मैदान. दौड़ लगाती तरंगें. कुछ नहीं, जिस पर टिक सकें. कोई नहीं, कम-से-कम कोई असली नहीं, मेरी फ्रीक्वन्सी पर. मेरी फ्रीक्वन्सी पर कुछ मनोरंजक ही चल रहा है, पर अँधेरे में भयावह भी लग सकता है. वैसे भी बंद आखों से सब वैसा ही दीखता है जैसा देखना चाहो - कुछ भी पाना मुश्किल नहीं. फिर कोई असली भी तो नहीं मेरी फ्रीक्वन्सी पर. कुछ नहीं जिस पर टिक सकें इस खाली मैदान में.

शून्यपाल

याद है तुम्हें कितना अच्छा लगता था मेरे हाथ से खाना, मुझसे टिक कर बैठना, कहती थीं - किसी और ने तुम्हें इतना पोषण नहीं दिया, पाला पोसा नहीं - सदियों से. याद तो होगा ही कैसे भरने चाहे थे तुमने कई खाली स्थान मुझसे. एक बार और देखना चाहता हूँ तुम्हें, जीना चाहता हूँ फिर से वही पल, अपने हाथों से खिलाना चाहता हूँ एक आखरी बार. चम्मच, तुम्हारे होंटों के बीच - चम्मच, धीमे से, उतारना चाहता हूँ तुम्हारे गले में, देखना चाहता हूँ नीला पड़ता तुम्हारा चेहरा, देखना चाहता हूँ बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ी होते, देखना चाहता हूँ तुम्हारे गालों पर लुडकती कुछ बूंदें. देखना चाहता हूँ तुम्हें एक आखरी बार.

गुमशुदा

और वह चल पड़ा तालाब की ओर, सुनाई पड़ा उसे साँप केंचुली बदलता साँप, अश्लील साँप. तमतमाया पर बिना रुके ही आगे बढ़ गया वह. तालाब में उतरा ही था अभी बस घुटनों तक पानी था जब दिखा उसे मगर - आराम फरमाता - टूट पड़ा उसपर अपने पंजे बढाए, पर मगर के जबड़ों में फंस दूसरे किनारे पहुँच गया. उस मगर को ढूंढ़ने पुलिसवाले निकले ही नहीं.

वॉलपेपर

जोकर जैसी मुस्कान गाल पर लिख दी तुम्हारे, बुरा हुआ, मैं तुम्हारे माथे पर पारो जैसे निशान की उम्मीद किए बैठा था - उसमें कवित्व होता - जीवन कला का प्रतिबिम्ब लगता. पर ऐसा कहाँ होता है भला! फिर चाँद भी तो नहीं है, और न ही माथे पर रखी स्नेह भरी हथेली की कोई कमी ही है अभी. और फिर, हाँ, ज़िन्दगी अभी लम्बी बाकी है, शायद कुछ बची भी हो, शायद एक दिन सुन्दर वॉलपेपर बन जाओ तुम.