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उड़ान

एक दुआ भेजी थी नींद पर सवार. अब तक जगा हूँ.

भूख

नाश्ते पर मिले, उसने कहा - कुछ खास भूख नहीं मुझे तुम क्या लोगे? - मुझे भी नहीं. - कुछ देर बैठ इधर-उधर की बातें की, कुछ पुरानी यादें जीं. फिर वह उठ कर चली गई - घर के लिए कुछ खरीदारी करने, मैं भी अनमना-सा लौट आया.

पगली पंक्तियाँ

कल्पवृक्ष की इस शाख पर हर शाम निकल पड़ता हूँ किसी कहानी की तलाश में. कहानी तो मिलती नहीं, हाँ, कभी-कभार ठण्ड ज़रूर लग जाती हैं. उन रातों को सपनों की गलियों से होकर पहुँच जाता हूँ कल्पवृक्ष की किसी दूसरी शाखा पर. वहां मिल जाती हैं कुछ पगली पंक्तियाँ.
बस  इतना चाहा था मैंने कोई मदद कर देता उलटी करने में. उलटे उसने कहा यहाँ नहीं!

हैदराबाद

जब कभी छुट्टी मिलती है आना ही पड़ता हैं इस शहर में. हर कोने में कुछ यादें दुबकी बैठी हैं, कहीं कहीं तो परतों में खुशबुएँ भी कैद हैं, सिलसिला चल पड़ता हैं बस तुम्हारे जख्मों पर रुकता हैं. बस अब और न आऊंगा यहाँ.

उप्पल

एक बस स्टॉप था यहाँ अब कुछ कदम आगे हैं. पर यादें सब की सब यहीं इसी जगह दफ़न हैं. एक परत में मैं बैठा हूँ घंटों गुजारता, दूर रहने को. आगे तक जाता, फिर लौट कर आता, घंटों काटता, बस दूर रहने को. फिर, साथ रहने को. यहीं बैठ कर बातें होती, कभी-कभी खड़ी बस में बैठे घंटों बतियाते. एक और परत में हम यहाँ नहीं हैं, रुकते ही नहीं थे हमेशा जल्दी में रहते कमरे में पहुँचने की. और गहरे कहीं एक फोन कॉल हैं, ज़ख्म दिखाए थे तुमने उस दिन न जाने कब दिए थे मैंने. भाग आया था मैं यहाँ खुद से डर के. अब तक सिहर रहा हूँ, इंतज़ार में.
एक दिन जागूँगा तुम्हारे ख्वाब में. उतर आऊंगा तुम्हारे कैनवस पर. और देखूँगा तुम्हें अपनी उँगलियों से कुछ उकेरते हुए. तुम देखोगी कहोगी - अभी कुछ उम्मीद है, और सवारने लगोगी  कोई कोना, कुछ कोने.