उप्पल

एक बस स्टॉप था यहाँ
अब कुछ कदम आगे हैं.
पर यादें सब की सब यहीं
इसी जगह दफ़न हैं.

एक परत में मैं बैठा हूँ
घंटों गुजारता, दूर रहने को.
आगे तक जाता, फिर लौट कर आता,
घंटों काटता, बस दूर रहने को.

फिर, साथ रहने को.
यहीं बैठ कर बातें होती,
कभी-कभी खड़ी बस में बैठे
घंटों बतियाते.

एक और परत में
हम यहाँ नहीं हैं,
रुकते ही नहीं थे
हमेशा जल्दी में रहते
कमरे में पहुँचने की.

और गहरे कहीं
एक फोन कॉल हैं,
ज़ख्म दिखाए थे तुमने उस दिन
न जाने कब दिए थे मैंने.
भाग आया था मैं यहाँ
खुद से डर के.

अब तक सिहर रहा हूँ,
इंतज़ार में.

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