बर्फवाला मौसम दुबका बैठा है एक कोने में, जब भी धूप खिलती है काट देती है मुझे एक शीत लहर उन सबसे खिल रहे हैं जो सूर्य के स्वागत में. उन्हें देख बर्फ से जलने का अहसास लौट आता है मेरी हथेलियों में.
हर सुबह लौट जाती है मेरे दरवाज़े से उँगलियों की छाप छोड़ धूप. कभी पहले आसन लगवाया था पर अब वहां बैठा है शोक. अपने होठ टिका खिंची हुई नसों पर प्यास बुझाता है अपनी मेरे रक्त से. मैं बड़े प्यार से पोसता हूँ उसे. तृष्णा मेरे हृदय में भी तुम साथ रहो इसके हर पल. कभी खेलो इसके साथ, कभी बतियाओ. तुम्हें लगाए रखूँगा माँ की तरह अपने हृदय से.
लूसी हमारे हॉस्टल की बिल्ली आज सुबह एक कबूतर पर झपटी साझे बाथरूम में. कबूतर फुदकता रहा इस दीवार से उस दीवार पर पर लूसी के पंजे से बच न सका. करीब तीन मिनट बाद मुँह में कबूतर दबाए लूसी सीढ़ियों से उतर चली खून के कुछ छींटे पीछे छोड़ती. कुछ निंदनीय नहीं इसमें.
शाम ढले बारिश की बूँदें पड़ी तेज़ और बिलबिला उठे लोग. भाग चले तलाश में किसी भी काम-चलाऊ छत की. पर तुम, सुमी, रुकी रहना, मैं भी वहीं कहीं मिल जाऊँगा तुम्हें. पार कर ही लेंगे हम बारिश का मौसम.