बादल

शाम ढले
बारिश की बूँदें पड़ी
तेज़
और बिलबिला उठे लोग.
भाग चले तलाश में
किसी भी काम-चलाऊ छत की.

पर तुम, सुमी,
रुकी रहना,
मैं भी वहीं कहीं
मिल जाऊँगा तुम्हें.

पार कर ही लेंगे हम
बारिश का मौसम.

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ई बारिस भी जुलमी भई... दो दिलों को मिलने भी नहीं देती :)

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