एल ज़ोगोएबी
शाम के एक कोने में
टेपों से घिरा बैठा था,
जाने कितनी सुबहें
इनमें उतरते देखी थीं उसने,
जाने कितनी रातें
इन्हें जांचते काटी थीं,
जाने कब इन्हें सुनते
दुगुनी तेज़ी से बढ़ने लगा,
बुढ़ाने लगा.
जाने कैसे एक हफ्ते पुराना सन्देश
एक साल पुराना हो गया.
आज,
शाम के इस कोने में,
अहसास हुआ -
ईश्वर ज़रूर नौजवान होगा.
टेपों से घिरा बैठा था,
जाने कितनी सुबहें
इनमें उतरते देखी थीं उसने,
जाने कितनी रातें
इन्हें जांचते काटी थीं,
जाने कब इन्हें सुनते
दुगुनी तेज़ी से बढ़ने लगा,
बुढ़ाने लगा.
जाने कैसे एक हफ्ते पुराना सन्देश
एक साल पुराना हो गया.
आज,
शाम के इस कोने में,
अहसास हुआ -
ईश्वर ज़रूर नौजवान होगा.
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