चट्टान पर बैठी
चट्टान-से ही रंग की
एक छिपकली
देख रही थी हमें
शांत आँखों से,
तैर रहा था कोई सवाल
उसकी आँखों में.

घर पर
उसकी कोई रिश्तेदार
गीले फर्श पर फिसल रही थी,
जाने कैसे पहुँच गई थी वहाँ -
दीवारों और छत को छोड़.

टिप्पणियाँ

कहीं वह चट्टान वाली से मिलने तो नहीं निकली थी:)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तेरे कैनवस दे उत्ते

Fatal Familial Insomnia

विजय ऐसी छानिये...