चट्टान पर बैठी
चट्टान-से ही रंग की
एक छिपकली
देख रही थी हमें
शांत आँखों से,
तैर रहा था कोई सवाल
उसकी आँखों में.
घर पर
उसकी कोई रिश्तेदार
गीले फर्श पर फिसल रही थी,
जाने कैसे पहुँच गई थी वहाँ -
दीवारों और छत को छोड़.
चट्टान-से ही रंग की
एक छिपकली
देख रही थी हमें
शांत आँखों से,
तैर रहा था कोई सवाल
उसकी आँखों में.
घर पर
उसकी कोई रिश्तेदार
गीले फर्श पर फिसल रही थी,
जाने कैसे पहुँच गई थी वहाँ -
दीवारों और छत को छोड़.
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