पिलपिला आतंक - 2
एक फिल्म देखी कल बाकी सब के बीच उस फिल्म में एक मॉडल थी. दुबली-पतली नया आजमाइशी ड्रग लेकर वह बड़ी खाऊ हो जाती है. न जाने क्या-क्या खाने के बाद अपना एक पैर और बाँया हाथ भी खा जाती है फिर अपनी दाहिनी आँख निकालकर चबा जाती है, पूरी आँख नहीं, केवल पुतली ही अपने खून में बैठी, खून में लथपथ, वहीँ सो जाती है. कुछ ऐसा ही था जब तुमने मुझसे फ़ोन पर बात करते हुए अपने हाथ को चूसना-काटना शुरू किया था हिक्की दी थी खुद को. मुझे लगा, अगर पुरुष खुद को चूस सकते तो प्रतिदिन दो बार तो चूसते ही. आँख भर आई इस विचार तक पहुँचते लगा कुछ खुशनुमां याद करूँ, थोडा खुश हों लूँ - यादों के बहाने. तुम्हारी याद आई, और याद आया तुम्हारा डर, या शायद घृणा तेल, वेसिलीन, क्रीम व चॉकलेट से, तुमपर छाया सार्त्र का पिलपिला आतंक पिलपिलाहट में खोती सतहों को पकड़ने की कोशिश ब्रश से पेंट की परतें उनपर सदा के लिए चढ़ाती तुम. सतहों के बीच कहीं कैद रह गई खुशनुमां यादें. मिली नहीं मुझे.