सदियों पहले भैया कि ही तरह अग्नि भी रूठ गया था अपने पिता से. प्रथम पुत्र को खोजने अपने सभी पुत्रों को भेजा था प्रजापति ने, खुद भी चल पड़े थे सफ़ेद घोड़े का भेष बना. वर्षों भटक कर भी ढूंढ न पाए वे, थक कर एक झीले से पानी पीने को झुके. लाल प्रकाश देख सफ़ेद कमल के बीच ठिठुर गए वे. मुह पास ले गए उसके तो जल कर लाल हुआ. बिलकुल वैसा ही घोडा वर्षभर पहले भेजा था विश्वविजय करने. बस तीन दिन का अनुष्ठान बाकी रह गया है अब. विश्वविजय – अधिकार सब पर, एक विश्वास जिसपर यथार्थ टिका है. दासी कि गोद में पड़े एक अधिकार छिना था मुझसे तबसे ही कोई और न छिनने दिया मैंने. २१ तनों से बने २१ खम्बे, ३६ लम्बे हाथ वाली चम्मचें, ४ चार-पहियों वाले रथ, ४ चांदी के मुकुट, लाल ईटें, २४२ चाकू ३३३ सुइयां – सोने की और चांदी की और ताम्बे की, मिट्टी के बर्तन, और कई सौ जानवर, सब तैयार थे इस मैदान में जिसके पूर्व में सरोवर है जिसमें सब बह जाएगा धीरे-धीरे और रह जाएगा बस यह खाली मैदान घोड़े के टापों से भरा. अग्निहोत्र से पहले ब्राह्मण ने कहा बस, अब कुछ कहना मत, बोली ही त...