एक सुबह...

एक सुबह बस यों ही खुद से रूठ गया मैं
खूब मनाया मैंने खुदको, पर ना मना मैं.

कुछ ख्वाब थे मेरे सिरहाने रखे
उन सबको जला मैं
एक सुबह बस यों ही खुद से रूठ...

टिप्पणियाँ

स्वयं से बिना रूठे, कहाँ मानता है मन..बहुत सुन्दर..

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