अव्यवस्था

बचपन में 
हथेली पर खिंची लकीरें 
बहुत कच्ची थी,
बड़ी मेहनत लगती थी 
उन्हें पढने में।
मैं चाहता था 
पक्की हो जाएं,
जो मैं बनना चाहूँ  
बस वही बन जाऊं।

फिर एक दिन,
बहुत सी लकीरें थीं 
सब बड़ी गहरी,
एक बड़ी अव्यवस्था उतर आई हो जैसे 
मेरी हथेलियों में।

टिप्पणियाँ

सुन्दर..रेखायें गाढ़ी हो चली हैं..

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