दौड़ रही है लाइटें खिड़की से शीशे तक फैली, सोचता हूँ मैं किस ओर को चल रही होंगी गाड़ियाँ, सड़क पर. और लाइटों के पीछे ठहरी एक छिपकली जब आँख झपकता तेज़ी से भाग लेती पर जब भी देखता जम जाती - जमी ही रहती.
यहाँ से बहुत दूर एक मैदान हैं, रोएँदार पौधों से भरा, मीठी-सी खुशबू वाले सीरप से ढका, काले-भूरे कीड़े खाने वाला. कभी-कभार कुछ बड़े जीव भी फँस जाते हैं उसमें, सड़ते मांस की गंध दिनों तक अटकी रहती है घने कोहरे में. वहीँ लौट चलेंगे हम जब दिल भर जाएगा अ.