आत्मा
आज भी
अचानक हवा चल पड़ती है
भर जाता है आँगन
पत्तों की सरसराहट से,
महक उठता है घर
उनकी गंध से.
बहुत कमज़ोर हो चला था
कभी भी गिर जाता
ढा देता घर की छत
काटना ही पड़ा उसे
साल भर पहले.
पर फिर भी
कभी कभी
जब हवा चलती है अचानक
बाहें फैलाए खड़ा हो जाता है वह
मेरे आँगन में,
और व्यापने लगती है
उसके पत्तों की आदिम महक
घर भर में.
अचानक हवा चल पड़ती है
भर जाता है आँगन
पत्तों की सरसराहट से,
महक उठता है घर
उनकी गंध से.
बहुत कमज़ोर हो चला था
कभी भी गिर जाता
ढा देता घर की छत
काटना ही पड़ा उसे
साल भर पहले.
पर फिर भी
कभी कभी
जब हवा चलती है अचानक
बाहें फैलाए खड़ा हो जाता है वह
मेरे आँगन में,
और व्यापने लगती है
उसके पत्तों की आदिम महक
घर भर में.
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