तिनका

इस उथल-पुथल को
निचोड़ कर
कुछ पल निकालो
जहाँ देख सकूँ तुम्हें
एक अंतिम बार.

इस ठन्डे, बर्फीले मैदान में
कुछ सूखी लकड़ियों के
जलने की आवाज़ से
इस चुप्पी को
थोडा तोड़ो.

... --- ...

टिप्पणियाँ

nilesh mathur ने कहा…
बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन!

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