फिर से - 2

हमारी बातों को
शब्दों को
लग गई है दीमक
ख़ामोशी की.

उनमें बसा अर्थ
उनमें भरा प्रेम
धीरे-धीरे
रिस गया है,
अब केवल
खोखल बचे हैं.

पर अब भी
चाहता हूँ थामना
तुम्हारा हाथ,
छूना तुम्हारा मन,
कहना फिर से...

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर ....

कमेंट्स कि सेटिंग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ...
nilesh mathur ने कहा…
सुन्दर रचना!

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