जादुई इस कमरे में मेरी बनाई दुनिया है- एक तस्वीर उस दुनिया की जो बाहर खड़ी है. कभी खिड़की से झांकती है तो कभी किवाड़ खोल अन्दर ही घुस आती है, थोडा बदलना पड़ता है फिर अपनी तस्वीर को थोडा रंगना पड़ता है दुनिया को.
सपना एक ऐसे घर का जहाँ केवल वे आएं जिन्हें मैं बुलाऊं, बड़ा, चोटी पर और मेरा. पूरा हो ही जाता हैं यह सपना, जिसने भी देखा पा लिया. और फिर जुड़ने की कोशिश में तोड़ दिया वह मकान अपने ही सपनों का.
उदास था वह दिन पर हंस रहे थे हम सब, दिन भर. गर्म चावलों से उठती गंध से खिड़की पर आती धूप के स्वाद से आसमान पर पड़ी दरार पर अटके पड़े ध्रुव पर खुद पर हंस रहे थे हम दिन भर. उदास था वह दिन.