सोफिया - 2
अभी तो याद होगी तुम्हें
उसकी आवाज़?
घंटों थी वह
तालाब के किनारे,
-नहीं, अभी नहीं
इनमें से कोई
शोर मचेगा.
कोई खींच लेगा मुझे किनारे.-
दिखा?
कमरे में लौट कर
ब्लेड तो उठाया,
पर केवल खरोंच ही पड़ी.
याद तो होगा तुम्हें
हिम्मत कहाँ थी उसमें.
याद तो होगी तुम्हें
उसकी आवाज़,
कितनी धीमी हो गई थी
जब उठी थी वह
दवाइयों से उभरी नींद से
उसकी आवाज़?
घंटों थी वह
तालाब के किनारे,
-नहीं, अभी नहीं
इनमें से कोई
शोर मचेगा.
कोई खींच लेगा मुझे किनारे.-
दिखा?
कमरे में लौट कर
ब्लेड तो उठाया,
पर केवल खरोंच ही पड़ी.
याद तो होगा तुम्हें
हिम्मत कहाँ थी उसमें.
याद तो होगी तुम्हें
उसकी आवाज़,
कितनी धीमी हो गई थी
जब उठी थी वह
दवाइयों से उभरी नींद से
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