घर
कपडों से रंग की तरह
उड़ रहा हूँ मैं
धीरे-धीरे.
उड़ रहा हूँ,
उड़ता जा रहा हूँ...
धीरे-धीरे...
धीरे-धीरे...
अब और रुकना चाहता नहीं यहाँ
नहीं चाहता इसीलिए
उड़ रहा हूँ
धीरे-धीरे...
अब तो दिखने लगा है मेरे पार,
ध्यान से देखो
कुछ विकृत हो जाता है
मुझसे गुज़रकर.
पर बहुत थोडा सा.
और हर सुबह
यहीं पाता हूँ खुदको,
खड़े होने की कोशिश करता-
मेरी आँखों में भरी
इस जगह की परछाइयाँ
रोकती हैं मेरा रास्ता.
उड़ रहा हूँ मैं
धीरे-धीरे.
उड़ रहा हूँ,
उड़ता जा रहा हूँ...
धीरे-धीरे...
धीरे-धीरे...
अब और रुकना चाहता नहीं यहाँ
नहीं चाहता इसीलिए
उड़ रहा हूँ
धीरे-धीरे...
अब तो दिखने लगा है मेरे पार,
ध्यान से देखो
कुछ विकृत हो जाता है
मुझसे गुज़रकर.
पर बहुत थोडा सा.
और हर सुबह
यहीं पाता हूँ खुदको,
खड़े होने की कोशिश करता-
मेरी आँखों में भरी
इस जगह की परछाइयाँ
रोकती हैं मेरा रास्ता.
टिप्पणियाँ
रोकती हैं मेरा रास्ता
आखिर घर जो ठहरा:) वैसे एक बात पूछूं- आप पक्के रंग के कपडे क्यों नहीं खरीदते जिसका रंग न उडे:):):-)