पंख

कभी कभी जब
आंसू भर आते थे,
मुझे गिरता देख,
उनके संग,
तुम दे देते थे पंख,
उड़ा ले चले थे
अपने संग,

पर
उड़ता देख मुझे
भय भर आया तुममें,
जाने कहाँ छुपा बैठा था वह.

और अब
रेलिंग पर
पंजे टिकाए,
बाहें फैलाए,
पूरा बल लगा
सोच रही हूँ,
जल्द ही
पंख उग आएंगे,
शायद.
प्रतीक्षा में हूँ.

टिप्पणियाँ

पंख होते तो उड़ जाती मैं......:)

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