प्रीति-भीति
तैर रहा था मैं हवा में, थकने लगा था ऊँची पहाड़ी पर चढ़ते हुए. ऊपर उड़ती हुई एक चट्टान दिखी, पास पहुंचा गुफा थी भीतर, समुद्र की आवाजें कैद थी उसमें. दियों से सजी सीढ़ियों से नीचे उतरा एक बड़ा लिंग था बड़ी सी एकलौती आँख से मुझे घूरता हुआ. लगा निगल ही जाएगा मुझे. बाद में हिम्मत ही नहीं हुई बताने की, किसीको भी.