मत्स्य-वेध
नाव में लेटे,
चाँद को देखते,
इंतज़ार करते
मछलियों के काटने का,
आधी रात गए
प्यार...
समुद्र सा नीला आकाश
लहराता रहा,
उफनते बादलों के बीच.
धनुष लिए
एक ओर खडा मैं,
बाणों में सजी
जाने कितनी मछलियाँ,
भाले भी कुछ
कछुओं की पीठों पर.
अपने द्वीप पर खड़े तुम
धिक्कारते मुझे
ढेर सी मछलियों को
अपनी ओर आते देख.
चाँद को देखते,
इंतज़ार करते
मछलियों के काटने का,
आधी रात गए
प्यार...
समुद्र सा नीला आकाश
लहराता रहा,
उफनते बादलों के बीच.
धनुष लिए
एक ओर खडा मैं,
बाणों में सजी
जाने कितनी मछलियाँ,
भाले भी कुछ
कछुओं की पीठों पर.
अपने द्वीप पर खड़े तुम
धिक्कारते मुझे
ढेर सी मछलियों को
अपनी ओर आते देख.
टिप्पणियाँ