One for the Mumbai Road

(In fond memory of 26/11 and all that Mumbai doesn't stand for)


शीशे सारे चढ़े हुए थे,
दूसरी सीट पर रखा
मेरा फ़ोन बज उठा,
उठाने को झुका
जोर का झटका लगा,
सिर भी छत से टकरा गया.
थोडा संभला, गाड़ी रोक कर
सिर में दर्द था,
आँख में उतर आई थी
एक बूँद खून की,
गुलाबी दिखने लगी
हर चीज़, हर ओर.
गुलाबी चश्मा चढा हो जैसे.
कॉलर ठीक कर
आगे बढ़ चला.

कुछ आगे
उल्टी रोकी न गई,
गाडी से उतरा ही था
बारिश होने लगी,
उछलने लगी बूंदे,
छींटे मारने लगी,
हाथ-पाँव उग आए हों जैसे.
धोने लगी पूरा रास्ता,
मिटाने लगी सारे निशान
मेरी गाडी से.
उठा ले गई मुझे,
दूर उस घटना से
जो जाने कब घटी थी,
शायद किसी भूले सपने में
हाँ, सपना था शायद,
सपना ही तो था.

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