कुछ कदम सूखे पत्तों पर
जाने कहाँ खो गई है ढूँढ ढूँढ कर थक गया, वह छोटी सी बोतल संभाल कर रखे थे जिसमें दो बूँद आंसूं. आज फुँक रहा हूँ भीतर कहीं साँसों में भर गया है धुआं, जल रही है आँखें चुभ रहा है कुछ, पर वह बोतल... उसी के पास एक नीली सी बोतल में कुछ सपने भी छुपे हैं कई जागती रातों के, कई धुंधली सुबहों के, तरल सपने जो लाख कहने पर भी बदले ही नहीं. बंजर-सी हो गई थी, आखिरी बार जब दिखी थी, मनी प्लांट तक नहीं उगता उसमें. भर गया है धुआं.