स्थैतिक

एक बार में
एक कोशाणु,
अंदर
तेज़ाब में घुलकर
पच रहा है.
फिर बन रहा है,
एक और वाइरस.

कोशाणुओं पर जीते हैं,
धीरे-धीरे बढ़ते हैं,
पहले सारी त्वचा पर कब्जा
फिर भीतरी अंगों तक सुरंगें.

सेब
सड़ते ही नहीं कभी.
बस छील दो खाल,
तो पड़ने लगते हैं भूरे,
पर खाल-
कुछ खास नहीं स्वाद.

बचपन में
झलक देखी थी कभी
अनाबेल चॉग की,
उससे ही जाना
क्या होता है प्यार.
आज
चीख रही हो तुम,
सलवटें आ रही हैं,
होठों पर,
और.
याद आ रही है वह.

घुटन बढ़ रही है,
देख रहा हूँ.
धंस रही है आँखें
पर अभी तक देख रहा हूँ.

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