प्रेम
मैंने सीख ही लिया आखिर करना प्रेम तुमसे. ताजे ज़ख्म सा लाल प्रेम. हर आवाज़ पर ध्यान टिकाए लाचार कबूतर सा प्रेम. मेरे होठों पर सजी लम्बी खामोशी सा प्रेम. तुम्हारी बांहों में सिमटी सिकुडी चादर सा प्रेम. हमारी गर्माहट में बसा पसीने की गंध सा प्रेम. शब्दों की परछाई में दुबका-दुबका सा प्रेम. तागों के बीच चाँद की बूढी सा प्रेम. हाँ, सीख ही लिया आखिर करना प्रेम तुमसे.