नाबदान

कुछ लोग जीते जीते इतने पुराने हो जाते हैं
महल के बजाए बस खंडहर रह जाते हैं.
भटकती हैं, दीवारों पर सिर पटकती हैं आवाजें
यहाँ गूंजने की गुंजाईश कम ही रहती हैं.
बसेरा है उलटी लटकी चिमगादड़ों का यहाँ
टपकती लार की नदियाँ बहती रहती हैं.
नाबदान में कुछ उग आया है शायद
अब यहाँ भी कुछ खुशबुएँ उठती रहती हैं.

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