सबसे ख़तरनाक

काले पड़ते नाखूनों
होठों से झड़ती पपड़ियों
पीली आँखों
सूखे पत्तों से जर-जर शरीर
के पीछे कहीं उठ रही है
एक कीट चेतना.
मुर्दा सपनों पर नाचती
अमरत्व की प्यासी
अपने नहीं, उत्क्रांति के;
तलाश में दौड़ती
रानी-कीट की
सार बतलाने उसे बस
चुप्पी में जकड़
मुर्दा शान्ति से भरने से पहले.

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