सोफ़िया-३१ / अपराध
बाँध टूटा था कहीं
तेज़ी से बहा था समय
लहरें उठी थीं
और उनकी परछाइयाँ खड़ी थीं
सोफ़िया के होठों, आखों को घेरे.
सोचता हूँ कह ही दूँ
क्या हुआ गर वह ना कहेगी?
कोई चाहता है उसे
यह जानकर क्या बुरा होगा भला?
पर लगता है वह देखेगी मुझे
दया भर अपनी आखों में
बिना कहे ही कहेगी -
क्यों लाद रहे हो मुझपर?
तेज़ी से बहा था समय
लहरें उठी थीं
और उनकी परछाइयाँ खड़ी थीं
सोफ़िया के होठों, आखों को घेरे.
सोचता हूँ कह ही दूँ
क्या हुआ गर वह ना कहेगी?
कोई चाहता है उसे
यह जानकर क्या बुरा होगा भला?
पर लगता है वह देखेगी मुझे
दया भर अपनी आखों में
बिना कहे ही कहेगी -
क्यों लाद रहे हो मुझपर?
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