नववर्ष

है
एक कला है
जो फल-फूल रही है
तेज़ी से फ़ैल रही है
बाकी सब पर छा रही है
अकेली बची है

भूलने की कला
पिछली बार से कुछ सीखती नहीं
अगली बार की चिंता नहीं
बस निकल जाए इस बार के पार
हर बार, बार बार
अकेली.

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कविताएं मर रहीं हैं
कहानी, उपन्यास, नाटक, गीत
सभी मर रहें हैं.
रघुवंश छोटा हो गया है
और बाणभट्ट के आखरी पन्ने मिट गए हैं.
विलियम बरोज़ के शब्द खोए हैं
पैटी स्मिथ और बोउवी का संगीत खोकला हो चला है.
न अकविता रही है, न तेवरी जीवित है.
पंक्तियाँ मिट रही हैं, कोरे हो रहे हैं कागज़.

एक एक कर मरते, तड़पते बदकिस्मतों को
न देखने की क्षमता की कीमत तो चुकानी ही थी.
कुछ नया आया, पुराने को मिटाने
अब नया ना जाने कब आएगा, आएगा भी या नहीं.

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