पंक्तियाँ
कविताएं मर रही हैं कहानी, उपन्यास, नाटक, गीत सभी मर रहे हैं. रघुवंश छोटा हो गया है और बाणभट्ट के आखिरी पन्ने मिट गए हैं. विलियम बरोज़ के शब्द खोए हैं पैटी स्मिथ और बोउवी का संगीत खोखला हो चला है. न अकविता रही है, न तेवरी जीवित है. पंक्तियाँ मिट रही हैं, कोरे हो रहे हैं कागज़. तपती दोपहरी में लिखी पंक्तियों में एक एक कर मरते बदकिस्मतों को न देखने की क्षमता की कीमत तो चुकानी ही थी. कुछ नया आया, पुराने को मिटाने अब नया न जाने कब आएगा, आएगा भी या नहीं.