मौशुमी के लिए
बाहर हालात चाहे जैसे हों
कुछ खुशनुमा लिखना चाहूंगा तुम्हारे लिए
गालों और बालों की बातें तो नहीं पर
पर उस मुस्कान पर जो होठों पर थी तुम्हारे जब
गोद में पाँव रखे सोया था उत्कर्ष
और उस हँसी पर जिससे देवर को डपटा तुमने।
केवल तुम्हारा स्नेह ही नहीं मुझे संजोए रखे है,
पर वह अदा भी जैसे तुम फ्रेंच विंडो में उगते सूरज को देख रही थी
जब हम सब बैठे ब्लैक डॉग पी रहे थे।
कुछ खुशनुमा लिखना चाहूंगा तुम्हारे लिए
गालों और बालों की बातें तो नहीं पर
पर उस मुस्कान पर जो होठों पर थी तुम्हारे जब
गोद में पाँव रखे सोया था उत्कर्ष
और उस हँसी पर जिससे देवर को डपटा तुमने।
केवल तुम्हारा स्नेह ही नहीं मुझे संजोए रखे है,
पर वह अदा भी जैसे तुम फ्रेंच विंडो में उगते सूरज को देख रही थी
जब हम सब बैठे ब्लैक डॉग पी रहे थे।
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