शान्ति के निमित्त

इस इमारत की दीवारों से
आवाज़ें आती हैं अक्सर
चूहों के दौड़ने की,
एक सेना छुपी है शायद
इनके भीतर।

किसी रात, अँधेरे में
निकल आएँगे वे सारे
उनके कटोरी जैसे पंजे
खोदना चाहेंगे तुम्हें
वैसे ही जैसे खोदते हैं जड़ें
तेज़ी से बढ़ते दांत उनके
कुतरना शुरू करेंगे जब
एक चीख उठेगी
पर निकलने से पहले
कोई एक घुस जाएगा तुम्हारे मुह में
और निगल जाएगा तुम्हारा कंठ।

तब शान्ति होगी हर ओर।

टिप्पणियाँ

चूहे जो पहले उनके दिमाग में थे
अब मेरी नाक में घुसे जा रहे हैं
मेरा हलक कुतरने को आतुर।

मैं सम्मोहित सा शिथिल पड़ा
देख रहा हूँ अपना क्षरण;
क्षण-क्षण मरण!
-ऋ.
चूहे जो पहले उनके दिमाग में थे
अब मेरी नाक में घुसे जा रहे हैं
मेरा हलक कुतरने को आतुर।

मैं सम्मोहित सा शिथिल पड़ा
देख रहा हूँ अपना क्षरण;
क्षण-क्षण मरण!
-ऋ.
डॉ.बी.बालाजी ने कहा…
पुस्तक बाचने बैठा था
कि अचानक
अक्षर-शब्द
काले-काले चूहों में बदलने लगे
पुस्तक के पन्नों में
जगह-जगह
कुछ छोटे
कुछ बड़े
छेद बनने लगे
मेरे हाथ में जमा होने लगा
पुस्तक के पन्नों का
पुलिंदा
प्रयास जारी है
पेपरमेशी के काम आए

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