पेड़ बनना
धीरे धीरे
उसकी खाल पिघल कर
फिर से जम गई.
अब कुर्सी के हत्थे भी
उसके हाथ का एक हिस्सा थे.
हाथ हिला पाना अब
मुमकिन नहीं रहा था
बिना अपनी खाल
खुद ही खींचे.
और फिर क्यों कोई
उठे, चले, लड़े, काटे
वे फोड़े दिखाए
जो लगातार बैठे रहने से
पीठ पर उभर आए हैं?
क्यों छिलने दे खाल
जो चिपक गई है
कुर्सी के चिकने चमड़े से?
वृक्ष रह जाएगा बस एक
अपने आसमान की तलाश में
वहीँ पसरा
उँगलियाँ तानता, फैलाता
पत्ते झड़ता, अपने काँटों से
चाँद को लहू-लुहान करता
अपनी ही रगड़ से
हवाओं में झूमते हुए
जलता.
जलता हुआ एक वृक्ष
धुआं उगलता
लपटें वहां भेजता
जहाँ पहुँच न पाती
उसकी उंगलियाँ.
उसकी खाल पिघल कर
फिर से जम गई.
अब कुर्सी के हत्थे भी
उसके हाथ का एक हिस्सा थे.
हाथ हिला पाना अब
मुमकिन नहीं रहा था
बिना अपनी खाल
खुद ही खींचे.
और फिर क्यों कोई
उठे, चले, लड़े, काटे
वे फोड़े दिखाए
जो लगातार बैठे रहने से
पीठ पर उभर आए हैं?
क्यों छिलने दे खाल
जो चिपक गई है
कुर्सी के चिकने चमड़े से?
वृक्ष रह जाएगा बस एक
अपने आसमान की तलाश में
वहीँ पसरा
उँगलियाँ तानता, फैलाता
पत्ते झड़ता, अपने काँटों से
चाँद को लहू-लुहान करता
अपनी ही रगड़ से
हवाओं में झूमते हुए
जलता.
जलता हुआ एक वृक्ष
धुआं उगलता
लपटें वहां भेजता
जहाँ पहुँच न पाती
उसकी उंगलियाँ.
टिप्पणियाँ