वो एक दिन एक अजनबी को...

कुछ पुर्जें हैं ख़त के डायरी में कैद,
वक़्त आ गया है उन्हें आज़ाद करने का।
तेरी कहानी जो सिमटी पड़ी थी उनमें
आधे आकाश में तैरेगी अब।
अंगूठी, बाँहों के कंगन और सात फेरों समेत
वह जो जेवर थे दिल में संभालें
वे तो कबके डूब गए, गंगा में बहाते ही।

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