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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्क्रिप्टेड

आजकल सब अनुभव नकली-से हो गए हैं। सब कुछ कुछ फीका-फीका सा लगता हैं। नपी-तुली सी प्रतिक्रियाएं हर दिशा से आती हैं, सारा विश्व बस एक चक्र मात्र है किसी जटिल नियमावली का अनुसरण करता। मैंने वही सब किया जो तुमने चाहा, और तुमने भी नियमावली के अनुसार प्रतिक्रिया की। पर यह सारी चालबाजी अब नकली लगने लगी हैं, इस स्क्रिप्टेड एक्सिस्टेंस से अब मैं ऊब गया हूँ।

अव्यवस्था

बचपन में  हथेली पर खिंची लकीरें  बहुत कच्ची थी, बड़ी मेहनत लगती थी  उन्हें पढने में। मैं चाहता था  पक्की हो जाएं, जो मैं बनना चाहूँ   बस वही बन जाऊं। फिर एक दिन, बहुत सी लकीरें थीं  सब बड़ी गहरी, एक बड़ी अव्यवस्था उतर आई हो जैसे  मेरी हथेलियों में।