बारिश के बाद

कल रात
बारिश के बाद
पत्तों से टपकता पानी
कुछ कह रहा था,
सुना था तुमने?

कवियों की सी टोली में
भटकेंगे हम
दिन दिन बढ़ते कचरे में
कविताओं के पुर्जे मिलाते,
चलोगी तुम?

सडकों पर बने
गड्ढों में जमा पानी में
कुछ नाव तैराएँगे,
चलोगी ना?

टिप्पणियाँ

मन के छोटे छोटे सपनों में साथ बना रहे तो प्रेम सागर सा प्लावित हो जाता है। बहुत सुन्दर कविता।

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